ख्वाहिशों का आसमां नहीं होता...
मैंने समझा था सूरज तुम्हें, जो रौशन करेगा मुझे लेकिन तुमने तो मुझे जला दिया.... मैंने समझा था चांद तुम्हें, जिसकी चांदनी पर नाज था मुझे लेकिन तुमने तो मुझे रूला दिया ... मैंने समझा था फूल तुम्हें, जिसकी खुशबू आबाद करेगी मुझे लेकिन तुमने तो मुझे उजाड़ दिया... मैंने समझा था हमसफर तुम्हें लेकिन तुमने तो सफर ही बदल दिया मैंने समझा था हमसाया तुम्हें लेकिन तुमने तो मेरा साया ही छीन लिया... क्या खता थी मेरी बस इतनी कि मैंने तुम्हें टूटकर चाहा तुम्हें अपना माना क्यूं सितम इतना मुझ पर ऐ दोस्त बता मुझे क्या भरोसा करना सजा है क्या मोहब्बत करना गुनाह है प्यार तो नाम है ऐतबार का फिर क्यूं तुमने किया कत्ल इसे क्यों तोड़ा दिल तुमने है जवाब तो दे दे हमें बता मेरी खता को... वरना समझ ले इतना कि ख्वाहिशों का आसमां नहीं होता और दिल दुखाने वालों का भला नहीं होता।