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ख्वाहिशों का आसमां नहीं होता...

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  मैंने समझा था सूरज तुम्हें, जो रौशन करेगा मुझे लेकिन तुमने तो मुझे जला दिया.... मैंने समझा था चांद तुम्हें, जिसकी चांदनी पर नाज था मुझे लेकिन तुमने तो मुझे रूला दिया ... मैंने समझा था फूल तुम्हें, जिसकी खुशबू आबाद करेगी मुझे लेकिन तुमने तो मुझे उजाड़ दिया... मैंने समझा था हमसफर तुम्हें लेकिन तुमने तो सफर ही बदल दिया मैंने समझा था हमसाया तुम्हें लेकिन तुमने तो मेरा  साया ही छीन लिया... क्या खता थी मेरी बस इतनी कि मैंने तुम्हें टूटकर चाहा तुम्हें अपना माना क्यूं सितम इतना मुझ पर ऐ दोस्त बता मुझे क्या भरोसा करना सजा है क्या मोहब्बत करना गुनाह है प्यार तो नाम है ऐतबार का फिर क्यूं तुमने किया कत्ल इसे क्यों तोड़ा दिल तुमने है जवाब तो दे दे हमें बता मेरी खता को... वरना समझ ले इतना कि ख्वाहिशों का आसमां नहीं होता और दिल दुखाने वालों का भला नहीं होता।

कुछ दोस्त हमें.....हमेशा याद आते हैं...

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हम साथ नहीं हम पास नहीं हम मिलेंगे कभी ये आस नहीं हम कहते नहीं हम सहते नहीं लेकिन हर पल सब यादों में हमारी हर बातों में और सांसों में वो रहते हैं.. जिनसे चोरी-चोरी हम कहते हैं कि आप हमें .. .हमेशा याद आते हैं... उनका किस्सा हमसे मिलना उनका हंसना उनका गुस्सा उनका गाना उनका बहाना हमें सताना हमें मनाना हर पल हमें यही कहता है.. कि सच.. आप हमें .. .हमेशा याद आते हैं... उनकी शैतानियां उनकी कहानियां उनकी मेहरबानियां हम बच्चों को बताते हैं उन्हें याद करके मंद-मंद मुस्कुराते हैं जिक्र जब भी उनका होता है फक्र दिल को होता है आंखें हो जाती हैं नम और हम बात कर देते हैं कम दिल चुपके से कहता है कि सच.. आप हमें .. .हमेशा याद आते हैं...
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 बड़ी कश्मकश में फंसी है जिंदगी उलझनों का हिसाब नहीं और सवाल बेहिसाब है.. दिल खोजता है आज भी उन कंधों को,  जिस पर सिर रखकर  रोने का मन करता है नजरों को इंतजार  आज भी उन हाथों का है, जिन्हें थामकर, तूफानों से लड़ने का मन करता है  तुम कहां हो, तुम हो भी या नहीं हो कुछ भी नहीं पता मुझे फिर भी तेरे आने का इंतजार हर पल ये दिल करता है... बड़ी कश्मकश में फंसी है जिंदगी उलझनों का हिसाब नहीं और सवाल बेहिसाब है.. कतरा-कतरा, लम्हा-लम्हा ये वक्त गुजर रहा है फिर भी ना जाने क्यों तुम लौट आओगे, ये ही दिल हर बार... बार-बार कहता है सच में ... बड़ी कश्मकश में फंसी है जिंदगी उलझनों का हिसाब नहीं और सवाल बेहिसाब है.. मगरूर दुनिया वाले अपने चश्में  से तुम्हें देखते हैं चेहरे पर तो मुस्काते हैं मुंह फेरते ही. तंज कसते हैं गैरों के बीच अपनों की तलाश हर वक्त ये दिल करता है रिश्तों के रेगिस्तान में बरसात की उम्मीद करता है सच में ... बड़ी कश्मकश में फंसी है जिंदगी उलझनों का हिसाब नहीं और सवाल बेहिसाब है....। ( गौरी)